About Indian Culture in hindi

Writer..ABHISHEK PANDEY
भारतीय संस्कृति और उसका भविष्य पर निबन्ध | Essay on Indian Culture and its Future in Hindi!
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में- ”मेरे विचार से सारे संसार के मनुष्यों की एक ही सामान्य मानव-संस्कृति हो सकती है । यह दूसरी बात है कि वह व्यापक संस्कृति अब तक सारे संसार में अनुभूत और अंगीकृत नहीं हो सकी है ।
विभिन्न ऐतिहासिक परंपराओं से गुजरकर और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में रहकर संसार के भिन्न-भिन्न समुदायों ने उस महान् मानवीय संस्कृति के भिन्न-भिन्न पक्षों से साक्षात् किया है । नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवाभक्ति तथा योगमूलक अनुभूतियों के भीतर से मनुष्य उस महान् सत्य के व्यापक और परिपूर्ण रूप को क्रमश: प्राप्त करता है, जिसे हम ‘संस्कृति’ शब्द द्वारा व्यापक करते हैं । यह ‘संस्कृति’ शब्द बहुत अधिक प्रचलित है ।

Read More Essays on Indian Culture:

इसकी सर्वसम्मत कोई परिभाषा नहीं बन सकी है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि और संस्कारों के अनुसार इसका अर्थ समझ लेता है । परंतु एकदम अस्पष्ट भी नहीं कह सकते, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य जानता है कि मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाएँ ही संस्कृति है ।
संस्कृति और सभ्यता में घनिष्ठ संबंध है । जिस जाति की संस्कृति उच्च होती है, वह ‘सभ्य’ कहलाती है और मनुष्य ‘संस्कृत’ कहलाते हैं । जो संस्कृत है, वह सभ्य है; जो सभ्य है, वही संस्कृत है । अगर इस पर विचार करें तो सूक्ष्म सा अंतर दृष्टिगोचर होता है ।
प्रत्येक जाति की अपनी-अपनी संस्कृति होती है, पर वे सभी सभ्य नहीं होतीं । संस्कृति अच्छी या बुरी हो सकती है परंतु सभ्यता सदैव सुंदर होती है । सभ्यता के अंतर में बहनेवाली धारा को हम ‘संस्कृति’ कहते हैं । संस्कृति का विकास देश की प्राकृतिक अवस्थाओं, पैदावार तथा जलवायु पर भी निर्भर होता है ।
प्रकृति का हमारे रहन-सहन, आचार-विचार सभी पर प्रभाव पड़ता है । उत्तम संस्कृति हीनतर संस्कृति को प्रभावित अवश्य करती है परंतु आत्मसात् नहीं । आर्य-संस्कृति से अन्य जातियाँ बहुत प्रभावित हुईं; जैसे-हूण, कुषाण, शक आदि । उन्होंने भारतीय संस्कृति की अच्छी-अच्छी बातों को ग्रहण किया ।
ADVERTISEMENTS:
संस्कृति और धर्म में बहुत अंतर है । धर्म व्यक्तिगत होता है । धर्म आत्मा-परमात्मा के संबंध की वस्तु है । संस्कृति समाज की वस्तु होने के कारण आपस में व्यवहार की वस्तु है । संस्कृति धर्म से प्रेरणा लेती है और उसे प्रभावित करती है । धर्म को यदि ‘सरोवर’ तथा संस्कृति को ‘कमल’ की उपमा दें तो यह गलत न होगा ।
मनुष्य के शरीर में आत्मा प्रधान है, शरीर गौण है फिर भी शरीर आत्मा के लिए अत्यंत आवश्यक है । भारतीय संस्कृति आत्मा को ही मुख्य मानती है । शरीर और मन की शुद्धि भी आवश्यक है । जब तक मनुष्य का बाह्य तथा अंतर शुद्ध नहीं होता तब तक वह त्रुटिपूर्ण विचारों को भी सही मानता रहेगा ।
शरीर तथा अंतःकरण की शुद्धि ही भारतीय आदर्शों की विशेषता है । भारतीय संस्कृति का विकास धर्म का आधार लेकर हुआ है इसीलिए उसमें दृढ़ता है । भारतीय संस्कृति व्यक्ति को व्यक्तित्व देती है और उसे महान् कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है, किंतु व्यक्तित्व का चरम विकास यह सामाजिक स्तर पर ही स्वीकार करती है । व्यक्ति की साधना द्वारा सामान्य जनजीवन परिष्कृत बने, यही भारतीय संस्कृति की महान् विशेषता है ।
भारतीय संस्कृति के आदि युगों में भी अन्य देश यहाँ के धर्म, दर्शन, आचार- विचार, सामाजिक सहिष्णुता आदि से प्रभावित हुए थे । एशिया पे- विस्तृत विशाल भू-खंडों में अनेक ऐसी ताम्र, लौह तथा प्रस्तर की मूर्तियाँ, लेख आदि मिले हैं, जो यहाँ के गौरवमय इतिहास, सभ्यता और यहाँ की संस्कृति के द्योतक हैं । भारतीय आवासको और धर्म दूतों ने साइबेरिया से सिंहल तट तक और सोकोतरा से सेलीबीज तक ऐसा सांस्कृतिक प्रभुत्व स्थापित किया कि आज भी वह अपनी गहरी छाप वहाँ की संस्कृति पर जमाए हुए है ।
भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी परम उदारता और सहिष्णुता है । धार्मिक, सामाजिक, नैतिक व्यवहारों में भारत की संस्कृति अन्य देशों की अपेक्षा कहीं अधिक उदार है, क्योंकि जैसा कहा जा चुका है, भारतीय संस्कृति की नींव धर्म का दृढ़ आधार लेकर खड़ी हुई है ।
मिस, यूनान तथा चीन देश की संस्कृति को भारतीय संस्कृति ने प्रभावित किया था, इतिहास इसका साक्षी है । भारतीय संस्कृति की एक अन्य विशेषता सुव्यवरथा है, जो हमें सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों तक में प्राप्त होती है । सामाजिक सुव्यवस्था इस विशाल जन-समूह को चार जातियों में विभक्त करके स्थापित की गई । हमारै ऋषियों ने जीवन की सुव्यवस्था चार आश्रमों में की है; ये आश्रम हैं- (१) ब्रह्मचर्य, (२) गृहस्थ, (३) वानप्रस्थ, (४) संन्यास ।
धार्मिक सुव्यवस्था कर्मफल पर आधारित थी, जो इन सबके मूल में थी । कर्मफल के सिद्धांत ने मनुष्य के जीवन में अपूर्व संतोष ला दिया । आज की परिस्थिति और अपने भविष्य से वह संतुष्ट था । वह जैसा कर्म करेगा, उसी के अनुसार इस जीवन और मृत्यु के उपरांत दूसरे जीवन में फल पाएगा । कर्मफल के सिद्धांत का वैज्ञानिक महत्त्व चाहे कुछ भी न हो, पर उसका सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय जीवन पर यथेष्ट रूप में पड़ा है ।
भारतीय समाज पुनर्जन्म में विश्वास रखता है । ईसवी पूर्व पाँचवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस ने भी संभवत: भारतीय दार्शनिकों से प्रभावित होकर ही पुनर्जन्म के सिद्धांत को मैना था । इस प्रकार भारतीय संस्कृति की सुदृढ़ नींव पड़ चुकी थी, जो आज तक इसी रूप में है । भारतभूमि रार अनेक जातियाँ आई तथा अपनी-अपनी सभ्यता-संस्कृति साथ लाईं ।
उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में हमारी सभ्यता पर प्रभाव पड़ा, फिर भी हम मूल रूप में उन्हीं विश्वासों, उन्हीं आचार-विचारों में जीवित रहे, जो हमारे परंपरागत संस्कारों में पलते गए थे । सांस्कृतिक उत्थान-पतन का युग अपने समय की विचारधाराओं के अनुसार ही होता है ।
ADVERTISEMENTS:
किसी देश की संस्कृति का भविष्य हम उसके समस्त प्राचीन और वर्तमान इतिहास को देखकर सफलतापूर्वक बतला सकते हैं । जब तक उत्थान और पतन के मध्य आशावादी विचारधारा की प्रधानता रहती हे, तब तक हम अपनी संस्कृति का उत्थान करते रहेंगे ।
हरिदत्त वेदालंकार के शब्दों में- ”भारतीय संस्कृति के उत्थान और पतन में दो पृथक और विरोधी विचारधाराओं का बड़ा हाथ रहा है । पहली आशावादी विचारधारा है, दूसरी निराशावादी । पहली, दुनिया के सुखों को पाना, आपत्तियों-विपत्तियों से जूझना और उनपर विजय प्राप्त करना चाहती है ।
दूसरी, संसार को दुःखमय समझ उससे भागकर जंगलों में जाने तथा मोक्ष प्राप्त करने का आदेश देती है । पहली के लिए संसार सत्य है, दूसरी के लिए मिथ्या । जब तक पहली विचारधारा का प्राधान्य रहा, हम आगे बढ़ते रहे । छठी शताब्दी ईसवी से दूसरी विचारधारा प्रबल हुई ।
वैराग्य और परलोकवाद के कारण संसार से मृणा की जाने लगी । अत: संसार ने भी भारत की उपेक्षा की । वह उन्नति की दौड़ में पिछड़ गया । एक हजार तीन सौ वर्षों तक हम मोहनिंद्रा में पड़े रहे । स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हम एक चौराहे पर खड़े हैं । एक मार्ग का वरण कर हमें आगे बढ़ना है ।
इसी पर हमारा भविष्य अवलंबित है । क्या हम गतिशीलधारा को अपनाएँगे या वैराग्यमूलक निवृत्ति-प्रधान वेदांत और भक्तिमार्ग के साथ मोहवश चिपटे रहेंगे ? मध्ययुग में भारतवर्ष के अद्यःपतन का एक बड़ा कारण परलोकवाद, भ्रांत विश्वास, दृषित विचारधाराएँ और थोथी आध्यात्मिकता थी ।
मेरी दृष्टि में भारतीय संस्कृति के विषय में ऐसी धारणाएँ अनुचित हैं । मध्ययुग में भी हमारी संस्कृति ने हास नहीं देखा था । वैसे विचारधारा देशकाल और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है । समाज में अंधविश्वास, अनेक बाह्याडंबर, धार्मिक कर्मकांड, दिखावा, जाति-पांति, ऊँच-नीच की भावना बढ़ती गई । इधर छोटे-छोटे राज्य आपसी युद्धों में व्यस्त थे । अत: भारत में एक ऐसा युग आया, जो उसके देदीप्यमान उज्जल इतिहास में कलंकस्वरूप था ।
मध्ययुगीन संतों ने और भक्ति साहित्य के अमर सृजनकर्ताओं ने समाज की अनेक प्रचलित कुरीतियों की ओर ध्यान दिया और समवेत स्वर में उसका विरोध किया । सहस्रों वर्षों से चली आई संस्कृति में उन्होंने फिर से नवजीवन भर दिया, ठीक उसी तरह जिस तरह समाज के बाह्याडंबरों और छुआछूत का विरोध स्वामी दयानंद ने किया था ।
महात्मा गांधी के उपदेशों ने समाज में भेदभाव मिटाने का सतत प्रयास किया था । सभी सुधारकों ने भारतीय संस्कृति में, जो सहस्रों वर्षों से धीरे-धीरे त्रुटियाँ आती गई, उनकी ओर इंगित किया । जनता में प्रचलित अंधविश्वासों और बाह्याडंबरों का प्रत्येक सुधारक ने घोर विरोध किया ।
आज की संस्कृति को और भी उन्नत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हमारे जो दोष संस्कृति में घर करते गए हम उन्हें दूर करने का प्रयास करें तभी सच्चे रूप में उन्नति संभव हो सकती है । आज का युग विज्ञान का युग है । हमें नवीन वैज्ञानिक प्रयोगों से लाभ उठाकर देश की उन्नति करनी है । मिथ्या आडंबर और अंधविश्वासों का युग अब बीत चुका है । यह जागरण का युग है, जिसमें हमें बड़ी सतर्कता से आगे बढ़ना है ।
जब कर्मफल या सिद्धांत केवल भाग्यवाद में परिणत हो गया तब मलूकदास की वाणी से यह निःसृत हुआ था:
अजगर करे  चाकरीपंछी करे  काम । दास मलूकाकह गए, सबके दाता राम ।।

ऐसे ही अनेक शब्दों ने समाज की अपढ़ जनता को अकर्मण्यता के अतिरिक्त और क्या सिखाया ? केवल भाग्य के भरोसे बैठे रहना या अपने अतीत के मिथ्याभिमान में ऐंठे रहना । हमारी उन्नति में बाधक सिद्ध होगा ।
आज हमें भारतीय नाम के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए अपने समस्त सांप्रदायिक वैमनस्यों को भुलाकर सहिष्णु बनाना होगा । भारतीय संस्कृति की उदार प्रवृत्ति ही हमारी संस्कृति के भविष्य को समुज्वल बना सकती है ।
संस्कृति सतत परिवर्तनशील है, जो जाति इस सत्य को स्वीकार नहीं करती और अपने प्राचीन विचारों के मोह में पड़ी रहती है, संसार के इतिहास से उसका नाम मिट जाता है । हमारा यह सौभाग्य है कि भारतीय संस्कृति परिस्थितियों के अनुसार अपना रूप बदलती रही है । उसका यह गुण उसके उज्ज्वल भविष्य की सबसे बड़ी गारंटी है ।

More information visit 
www.2nd Choice hindi mai.com

Comments

Popular posts from this blog

हिंदुस्तान से जुड़े 40 रोचक तथ्य By Ajay Mohan Updated: Mon, Jan 16, 2017, 17:33 [IST] India's 40 Interesting fact, Watch Video । वनइंडिया हिंदी देश बदल रहा है, प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। साथ ही परिवर्तन की लहर भी दौड़ चुकी है। ऐसे में तमाम लोग सिर्फ सिस्‍टम को गालियां देना पसंद करते हैं। यूं कहिये कि जब बात जब देश की आती है, तो अधिकांश लोगों की सोच नकारात्‍मक होती है। तमाम ऐसे हैं, जो घर, दुकान पर बैठे-बैठे या सड़क किनारे पान या चाय की दुकान पर खड़े होकर देश के सिस्‍टम को गालियां देते हैं। सच पूछिए तो गालियां देने से कुछ नहीं होने वाला। एक सकारात्‍मक सोच विकसित करनी ही होगी, क्‍योंकि तभी आप देश की तरक्‍की में हाथ बंटा पायेंगे। पढ़ें- दुनिया भर के रोचक तथ्य यह सकारात्‍मक सोच आयेगी अपने देश के इतिहास के पन्‍ने पलटने से। काले अध्‍यायों के साथ तमाम ऐसे अध्‍याय भी हैं, जो देश का गौरव बने। जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। देश के लिये एक सकारात्‍मक सोच विकसित करने के लिये ही हम आपके सामने रख रहे हैं देश के बारे में 40 तथ्‍य, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। या हो सकता है ये तथ्‍य जानने के बाद आपके होश उड़ जायें। हिन्‍दुस्‍तान से जुड़े 40 रोचक तथ्‍य पढ़ें स्‍लाइडर में- इंड्यूस वैली 'इंडिया' नाम की उत्पत्ति 'इंडिया' नाम की उत्पत्ति इंड्यूस नाम की नदी से हुई है जो कि इंड्यूस वैली की घाटियों में बहा करती थी। powered by Rubicon Project भारत गणराज्य नाम: अधिकारिक संस्कृत नाम हिंदुस्तान का 'भारत गणराज्य' है। जिसे आज लोग केवल 'भारत' ही कहते हैं। भूमि का आकार कितना बड़ा है भारत भारत विश्व में सबसे बड़े आकार वाले देशों की लिस्ट में सातवें नंबर पर है। अमीर-गरीब भारत में करोड़ो करोड़पति भारत में करोड़ो करोड़पति हैं लेकिन भारत में अमीर-गरीब के बीच में काफी अंतर है जिसके कारण यहां गरीबी ज्यादा है। 100 किलो से 64 किलो तक, केवल 30 दिन में 100 किलो से 64 किलो तक, केवल 30 दिन में 100 किलो से 64 किलो तक, केवल 30 दिन में भाषा कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं भाषा: भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं हैं, हिंदी अधिकारिक भाषा है जो कि देश के कई राज्यों में बोली जाती है। इसके अलावा अंग्रेजी भी देश के कई राज्यों में बोली जाती है। इसके अलावा देश में तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम , मराठी ऐसी भाषाये हैं जो कि देश के 22 राज्यों में बोली जाती है। भारत में 1,652 बोलियां और भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी भाषा सबसे ज्यादा अंग्रेजी बोली जाती है भारत में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा अंग्रेजी बोली जाती है। भारत विश्व का 24वां देश हैं जहां सबसे ज्यादा अंग्रेजी बोली जाती है। भारत में 22 राज्य हैं जहां हिंदी और अंग्रेजी मानक भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता है। तक्षशीला विश्वविद्यालय 700 ईसा पूर्व में भारत का पहला विश्वविद्यालय तक्षिला खुला था जिसमें से पढ़े हुए हजारों छात्रों ने विश्व के कोने-कोने में देश की खुशबू फैलायी। डाक व्यवस्था सबसे बड़ी डाक व्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी डाक व्यवस्था केवल भारत के ही पास है। सबसे पुराना शहर वाराणसी देश की पवित्र नगरी वाराणसी विश्व का सबसे पुराना शहर है। अजूबा आगरा का ताजमहल आगरा का ताजमहल विश्व के सात अजूबों में से एक है जिसे कि मुगल शासक शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया था। सड़क सबसे बड़ी रोड नेटवर्क विश्व की सबसे बड़ी रोड नेटवर्क भारत के ही पास है जो कि 1.9 मिलियन मील के हिस्से को आपस में जोड़ते हैं। चतुरंग संस्कृत शतरंज शतरंज जिसे के Chess कहते हैं उसका अविष्कार भारत में ही हुआ था।इसे 'चतुरंग संस्कृत' के नाम से जाना जाता था जिसका अर्थ होता है 'एक सेना के चार सदस्य'। हीरा हीरा हीरा: साल 1986 तक भारत अकेला विश्व का देश था जहां अधिकारिक रूप से हीरा पाया जाता था। निर्यात निर्यात हजारों सालों से भारत कपड़े को निर्यात कर रहा है इसके अलावा स्टील, कृषि वस्तुओं, और इस तरह की तकनीक या चिकित्सा से जु़ड़ी चीजों को भी वह निर्यात करता है। आयु वर्ग आयु वर्ग भारत में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग 25 साल से छोटे हैं तो वहीं 65 प्रतिशत लोग 35 साल से छोटे हैं। भारत में दूसरे देशों की अपेक्षा लोग जल्द ही जवान होते हैं। भारत की सभ्‍यता सबसे पुरानी सभ्‍यता भारत की सभ्‍यता विश्‍व में सबसे पुरानी है, यहां तक की विश्‍व के कई प्राचीनम स्‍थान और इमारतें भारत में हैं। भारत के प्राचीन साम्राज्‍य मिश्र और मेसोपोटामिया से भी पहले के हैं। फिल्‍में सबसे बड़ी फिल्‍म इंडस्‍ट्री विश्‍व की सबसे बड़ी फिल्‍म इंडस्‍ट्री भारत में हैं। ज्‍यादा फिल्‍में बॉलीवुड में बनती हैं, देश के अन्‍य कई स्‍टूडियों में भी फिल्‍मों का निर्माण होता है। वैदिक शास्‍त्र पवित्र कृतियां 500 से 2000 तक के वैदिक शास्‍त्रों का लेखन पंजाब क्षेत्र में किया गया। नंबर 'जीरो' जीरो का निर्माण गणित में सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण नंबर 'जीरो' की अवधारणा भारत ने ही दुनिया को दी। स्‍कूल सबसे बड़ा मॉन्‍टेसरी स्‍कूल भारत में ही विश्‍व का सबसे बड़ा मॉन्‍टेसरी स्‍कूल है। वो है लखनऊ का सिटी मोन्‍टेसरी स्‍कूल, जिसमें विद्यार्थियों की संख्‍या लगभग 26000 है। केला केले का सर्वाधिक निर्यात विश्‍व में केले का सर्वाधिक निर्यात भारत ही करता है। दूसरे स्‍थान पर ब्राजील है। दूध का उत्‍पादन दूध का उत्‍पादन भारत में विश्‍व का सर्वाधिक उत्‍पादन किया जाता है। भाग्‍यशाली रंग लाल रंग शुभ भारत में लाल रंग को शुभ माना जाता है, विवाह और अलग अलग अवसरों पर इसी रंग के कपड़े पहने जाते हैं। शाकाहार: शाकाहार: भारत में शाकाहारियों की संख्‍या विश्‍व में सर्वाधिक हैं। सर्वाधिक पर्वत श्रंखलाएं सर्वाधिक पर्वत श्रंखलाएं भारत के हिमालय स्थित है। इसके अलावा यहां पर पर्वत श्रंखलाएं लगभग 1500 मील में फैली हुई हैं जो कि 23, 600 फीट तक ऊंची हैं। विष्‍णु मंदिर सबसे ज्‍यादा श्रद्धालु तिरूपति स्थित विष्‍णु मंदिर दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां सबसे ज्‍यादा श्रद्धालु आते हैं। यहां वेटिकन और मक्‍का से भी श्रद्धालु आते हैं। सबसे पहला मकबरा सबसे पहला मकबरा दुनिया में शायद कुछ लोगों को पता होगा कि दुनिया में सबसे पहला मकबरा भारत में ही बनाया गया था। यहां कब्र शाहजंहा ने हुमायूं के लिये बनाया गया था हालांकि उसके बाद उनकी पत्‍नी और अन्‍य मुगल खानदान के लोगों को भी यहीं दफनाया गया। धार्मिक संग्रह धार्मिक संग्रह हर 12 साल के बाद इलाहाबाद में कुंभ मेला का आयोजन होता है। कुंभ मेला दुनिया में एक मात्र ऐसा मेला है जहां धर्म के नाम पर सबसे ज्‍यादा लोगों आते हैं। बृहादेश्‍वर मंदिर बृहादेश्‍वर मंदिर बृहादेश्‍वर मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है जहां शिव भगवान की सवारी नंदी की सबसे बड़ी मूर्ति है। उसकी उंचाई जो 13 फिट की जगह में बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें Read More About: स्‍वतंत्रता दिवसभारतआजादी English Summary On the occasion of Independence Day we have bring 50 interesting facts about India. These facts about India will blow your mind away. देश के लिये एक सकारात्‍मक सोच विकसित करने के लिये ही हम आपके सामने रख रहे हैं देश के बारे में 40 तथ्‍य, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। Newsletter Sign up for our daily Newsletter Enter your email id Home | Photos | Movies | Apps | Sitemap | ContactMedia Pvt