About Indian Culture in hindi

Writer..ABHISHEK PANDEY
भारतीय संस्कृति और उसका भविष्य पर निबन्ध | Essay on Indian Culture and its Future in Hindi!
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में- ”मेरे विचार से सारे संसार के मनुष्यों की एक ही सामान्य मानव-संस्कृति हो सकती है । यह दूसरी बात है कि वह व्यापक संस्कृति अब तक सारे संसार में अनुभूत और अंगीकृत नहीं हो सकी है ।
विभिन्न ऐतिहासिक परंपराओं से गुजरकर और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में रहकर संसार के भिन्न-भिन्न समुदायों ने उस महान् मानवीय संस्कृति के भिन्न-भिन्न पक्षों से साक्षात् किया है । नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवाभक्ति तथा योगमूलक अनुभूतियों के भीतर से मनुष्य उस महान् सत्य के व्यापक और परिपूर्ण रूप को क्रमश: प्राप्त करता है, जिसे हम ‘संस्कृति’ शब्द द्वारा व्यापक करते हैं । यह ‘संस्कृति’ शब्द बहुत अधिक प्रचलित है ।

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इसकी सर्वसम्मत कोई परिभाषा नहीं बन सकी है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि और संस्कारों के अनुसार इसका अर्थ समझ लेता है । परंतु एकदम अस्पष्ट भी नहीं कह सकते, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य जानता है कि मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाएँ ही संस्कृति है ।
संस्कृति और सभ्यता में घनिष्ठ संबंध है । जिस जाति की संस्कृति उच्च होती है, वह ‘सभ्य’ कहलाती है और मनुष्य ‘संस्कृत’ कहलाते हैं । जो संस्कृत है, वह सभ्य है; जो सभ्य है, वही संस्कृत है । अगर इस पर विचार करें तो सूक्ष्म सा अंतर दृष्टिगोचर होता है ।
प्रत्येक जाति की अपनी-अपनी संस्कृति होती है, पर वे सभी सभ्य नहीं होतीं । संस्कृति अच्छी या बुरी हो सकती है परंतु सभ्यता सदैव सुंदर होती है । सभ्यता के अंतर में बहनेवाली धारा को हम ‘संस्कृति’ कहते हैं । संस्कृति का विकास देश की प्राकृतिक अवस्थाओं, पैदावार तथा जलवायु पर भी निर्भर होता है ।
प्रकृति का हमारे रहन-सहन, आचार-विचार सभी पर प्रभाव पड़ता है । उत्तम संस्कृति हीनतर संस्कृति को प्रभावित अवश्य करती है परंतु आत्मसात् नहीं । आर्य-संस्कृति से अन्य जातियाँ बहुत प्रभावित हुईं; जैसे-हूण, कुषाण, शक आदि । उन्होंने भारतीय संस्कृति की अच्छी-अच्छी बातों को ग्रहण किया ।
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संस्कृति और धर्म में बहुत अंतर है । धर्म व्यक्तिगत होता है । धर्म आत्मा-परमात्मा के संबंध की वस्तु है । संस्कृति समाज की वस्तु होने के कारण आपस में व्यवहार की वस्तु है । संस्कृति धर्म से प्रेरणा लेती है और उसे प्रभावित करती है । धर्म को यदि ‘सरोवर’ तथा संस्कृति को ‘कमल’ की उपमा दें तो यह गलत न होगा ।
मनुष्य के शरीर में आत्मा प्रधान है, शरीर गौण है फिर भी शरीर आत्मा के लिए अत्यंत आवश्यक है । भारतीय संस्कृति आत्मा को ही मुख्य मानती है । शरीर और मन की शुद्धि भी आवश्यक है । जब तक मनुष्य का बाह्य तथा अंतर शुद्ध नहीं होता तब तक वह त्रुटिपूर्ण विचारों को भी सही मानता रहेगा ।
शरीर तथा अंतःकरण की शुद्धि ही भारतीय आदर्शों की विशेषता है । भारतीय संस्कृति का विकास धर्म का आधार लेकर हुआ है इसीलिए उसमें दृढ़ता है । भारतीय संस्कृति व्यक्ति को व्यक्तित्व देती है और उसे महान् कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है, किंतु व्यक्तित्व का चरम विकास यह सामाजिक स्तर पर ही स्वीकार करती है । व्यक्ति की साधना द्वारा सामान्य जनजीवन परिष्कृत बने, यही भारतीय संस्कृति की महान् विशेषता है ।
भारतीय संस्कृति के आदि युगों में भी अन्य देश यहाँ के धर्म, दर्शन, आचार- विचार, सामाजिक सहिष्णुता आदि से प्रभावित हुए थे । एशिया पे- विस्तृत विशाल भू-खंडों में अनेक ऐसी ताम्र, लौह तथा प्रस्तर की मूर्तियाँ, लेख आदि मिले हैं, जो यहाँ के गौरवमय इतिहास, सभ्यता और यहाँ की संस्कृति के द्योतक हैं । भारतीय आवासको और धर्म दूतों ने साइबेरिया से सिंहल तट तक और सोकोतरा से सेलीबीज तक ऐसा सांस्कृतिक प्रभुत्व स्थापित किया कि आज भी वह अपनी गहरी छाप वहाँ की संस्कृति पर जमाए हुए है ।
भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी परम उदारता और सहिष्णुता है । धार्मिक, सामाजिक, नैतिक व्यवहारों में भारत की संस्कृति अन्य देशों की अपेक्षा कहीं अधिक उदार है, क्योंकि जैसा कहा जा चुका है, भारतीय संस्कृति की नींव धर्म का दृढ़ आधार लेकर खड़ी हुई है ।
मिस, यूनान तथा चीन देश की संस्कृति को भारतीय संस्कृति ने प्रभावित किया था, इतिहास इसका साक्षी है । भारतीय संस्कृति की एक अन्य विशेषता सुव्यवरथा है, जो हमें सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों तक में प्राप्त होती है । सामाजिक सुव्यवस्था इस विशाल जन-समूह को चार जातियों में विभक्त करके स्थापित की गई । हमारै ऋषियों ने जीवन की सुव्यवस्था चार आश्रमों में की है; ये आश्रम हैं- (१) ब्रह्मचर्य, (२) गृहस्थ, (३) वानप्रस्थ, (४) संन्यास ।
धार्मिक सुव्यवस्था कर्मफल पर आधारित थी, जो इन सबके मूल में थी । कर्मफल के सिद्धांत ने मनुष्य के जीवन में अपूर्व संतोष ला दिया । आज की परिस्थिति और अपने भविष्य से वह संतुष्ट था । वह जैसा कर्म करेगा, उसी के अनुसार इस जीवन और मृत्यु के उपरांत दूसरे जीवन में फल पाएगा । कर्मफल के सिद्धांत का वैज्ञानिक महत्त्व चाहे कुछ भी न हो, पर उसका सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय जीवन पर यथेष्ट रूप में पड़ा है ।
भारतीय समाज पुनर्जन्म में विश्वास रखता है । ईसवी पूर्व पाँचवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस ने भी संभवत: भारतीय दार्शनिकों से प्रभावित होकर ही पुनर्जन्म के सिद्धांत को मैना था । इस प्रकार भारतीय संस्कृति की सुदृढ़ नींव पड़ चुकी थी, जो आज तक इसी रूप में है । भारतभूमि रार अनेक जातियाँ आई तथा अपनी-अपनी सभ्यता-संस्कृति साथ लाईं ।
उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में हमारी सभ्यता पर प्रभाव पड़ा, फिर भी हम मूल रूप में उन्हीं विश्वासों, उन्हीं आचार-विचारों में जीवित रहे, जो हमारे परंपरागत संस्कारों में पलते गए थे । सांस्कृतिक उत्थान-पतन का युग अपने समय की विचारधाराओं के अनुसार ही होता है ।
ADVERTISEMENTS:
किसी देश की संस्कृति का भविष्य हम उसके समस्त प्राचीन और वर्तमान इतिहास को देखकर सफलतापूर्वक बतला सकते हैं । जब तक उत्थान और पतन के मध्य आशावादी विचारधारा की प्रधानता रहती हे, तब तक हम अपनी संस्कृति का उत्थान करते रहेंगे ।
हरिदत्त वेदालंकार के शब्दों में- ”भारतीय संस्कृति के उत्थान और पतन में दो पृथक और विरोधी विचारधाराओं का बड़ा हाथ रहा है । पहली आशावादी विचारधारा है, दूसरी निराशावादी । पहली, दुनिया के सुखों को पाना, आपत्तियों-विपत्तियों से जूझना और उनपर विजय प्राप्त करना चाहती है ।
दूसरी, संसार को दुःखमय समझ उससे भागकर जंगलों में जाने तथा मोक्ष प्राप्त करने का आदेश देती है । पहली के लिए संसार सत्य है, दूसरी के लिए मिथ्या । जब तक पहली विचारधारा का प्राधान्य रहा, हम आगे बढ़ते रहे । छठी शताब्दी ईसवी से दूसरी विचारधारा प्रबल हुई ।
वैराग्य और परलोकवाद के कारण संसार से मृणा की जाने लगी । अत: संसार ने भी भारत की उपेक्षा की । वह उन्नति की दौड़ में पिछड़ गया । एक हजार तीन सौ वर्षों तक हम मोहनिंद्रा में पड़े रहे । स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हम एक चौराहे पर खड़े हैं । एक मार्ग का वरण कर हमें आगे बढ़ना है ।
इसी पर हमारा भविष्य अवलंबित है । क्या हम गतिशीलधारा को अपनाएँगे या वैराग्यमूलक निवृत्ति-प्रधान वेदांत और भक्तिमार्ग के साथ मोहवश चिपटे रहेंगे ? मध्ययुग में भारतवर्ष के अद्यःपतन का एक बड़ा कारण परलोकवाद, भ्रांत विश्वास, दृषित विचारधाराएँ और थोथी आध्यात्मिकता थी ।
मेरी दृष्टि में भारतीय संस्कृति के विषय में ऐसी धारणाएँ अनुचित हैं । मध्ययुग में भी हमारी संस्कृति ने हास नहीं देखा था । वैसे विचारधारा देशकाल और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है । समाज में अंधविश्वास, अनेक बाह्याडंबर, धार्मिक कर्मकांड, दिखावा, जाति-पांति, ऊँच-नीच की भावना बढ़ती गई । इधर छोटे-छोटे राज्य आपसी युद्धों में व्यस्त थे । अत: भारत में एक ऐसा युग आया, जो उसके देदीप्यमान उज्जल इतिहास में कलंकस्वरूप था ।
मध्ययुगीन संतों ने और भक्ति साहित्य के अमर सृजनकर्ताओं ने समाज की अनेक प्रचलित कुरीतियों की ओर ध्यान दिया और समवेत स्वर में उसका विरोध किया । सहस्रों वर्षों से चली आई संस्कृति में उन्होंने फिर से नवजीवन भर दिया, ठीक उसी तरह जिस तरह समाज के बाह्याडंबरों और छुआछूत का विरोध स्वामी दयानंद ने किया था ।
महात्मा गांधी के उपदेशों ने समाज में भेदभाव मिटाने का सतत प्रयास किया था । सभी सुधारकों ने भारतीय संस्कृति में, जो सहस्रों वर्षों से धीरे-धीरे त्रुटियाँ आती गई, उनकी ओर इंगित किया । जनता में प्रचलित अंधविश्वासों और बाह्याडंबरों का प्रत्येक सुधारक ने घोर विरोध किया ।
आज की संस्कृति को और भी उन्नत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हमारे जो दोष संस्कृति में घर करते गए हम उन्हें दूर करने का प्रयास करें तभी सच्चे रूप में उन्नति संभव हो सकती है । आज का युग विज्ञान का युग है । हमें नवीन वैज्ञानिक प्रयोगों से लाभ उठाकर देश की उन्नति करनी है । मिथ्या आडंबर और अंधविश्वासों का युग अब बीत चुका है । यह जागरण का युग है, जिसमें हमें बड़ी सतर्कता से आगे बढ़ना है ।
जब कर्मफल या सिद्धांत केवल भाग्यवाद में परिणत हो गया तब मलूकदास की वाणी से यह निःसृत हुआ था:
अजगर करे  चाकरीपंछी करे  काम । दास मलूकाकह गए, सबके दाता राम ।।

ऐसे ही अनेक शब्दों ने समाज की अपढ़ जनता को अकर्मण्यता के अतिरिक्त और क्या सिखाया ? केवल भाग्य के भरोसे बैठे रहना या अपने अतीत के मिथ्याभिमान में ऐंठे रहना । हमारी उन्नति में बाधक सिद्ध होगा ।
आज हमें भारतीय नाम के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए अपने समस्त सांप्रदायिक वैमनस्यों को भुलाकर सहिष्णु बनाना होगा । भारतीय संस्कृति की उदार प्रवृत्ति ही हमारी संस्कृति के भविष्य को समुज्वल बना सकती है ।
संस्कृति सतत परिवर्तनशील है, जो जाति इस सत्य को स्वीकार नहीं करती और अपने प्राचीन विचारों के मोह में पड़ी रहती है, संसार के इतिहास से उसका नाम मिट जाता है । हमारा यह सौभाग्य है कि भारतीय संस्कृति परिस्थितियों के अनुसार अपना रूप बदलती रही है । उसका यह गुण उसके उज्ज्वल भविष्य की सबसे बड़ी गारंटी है ।

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या दौर आया। सन् २००७ में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों (जैसे वानिकी) का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हिस्सा 16.6% था। उस समय सम्पूर्ण कार्य करने वालों का 52% कृषि में लगा हुआ था। इतिहास संपादित करें भारत में कृषि में 1960 के दशक के मध्य तक पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता था जिनकी उपज अपेक्षाकृत कम थी। उन्हें सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती थी। किसान उर्वरकों के रूप में गाय के गोबर आदि का प्रयोग करते थे। १९६० के बाद उच्च उपज बीज (HYV) का प्रयोग शुरु हुआ। इससे सिंचाई और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ गया। इस कृषि में सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ने लगी। इसके साथ ही गेहूँ और चावल के उत्पादन में काफी वृद्धी हुई जिस कारण इसे हरित क्रांति भी कहा गया। उत्पादन संपादित करें भारत में विभिन्न वर्षों में दाल-गेहूँ का उत्पादन (दस करोड़ टन में)[कृपया उद्धरण जोड़ें]- 1970-71 12-24 1980-81 11-36 1990-91 14-55 2000-01 11-70 2008-10 12-60 कृषि औजार संपादित करें भारत में कृषि में परंपरागत औजारों जैसे फावड़ा, खुरपी, कुदाल, हँसिया, बल्लम, के साथ ही आधुनिक मशीनों का प्रयोग भी किया जाता है। किसान जुताई के लिए ट्रैक्टर, कटाई के लिए हार्वेस्टर तथा गहाई के लिए थ्रेसर का प्रयोग करते हैं। अवलोकन संपादित करें २०१० एफएओ विश्व कृषि सांख्यिकी, के अनुसार भारत के कई ताजा फल और सब्जिया, दूध, प्रमुख मसाले आदि को सबसे बड़ा उत्पादक ठहराया गया है। रेशेदार फसले जैसे जूट, कई स्टेपल जैसे बाजरा और अरंडी के तेल के बीज आदि का भी उत्पादक है। भारत गेहूं और चावल की दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत, दुनिया का दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है कई चीजो का जैसे सूखे फल, वस्त्र कृषि-आधारित कच्चे माल, जड़ें और कंद फसले, दाल, मछलीया, अंडे, नारियल, गन्ना और कई सब्जिया। २०१० मई भारत को दुनिया का पॉचवा स्थान हासिल हुआ जिसके मुताबिक उसने ८०% से अधिक कई नकदी फसलो का उत्पादन् किया जैसे कॉफी और कपास आदि। २०११ के रिपोर्ट के अनुसार, भारत को दुनिया में पाँचवे स्थान पर रखा गया जिसके मुताबिक व सबसे तेज़ वृद्धि के रूप में पशुधन उत्पादक करता है। २००८ के एक रिपोर्ट ने दावा किया कि भारत की जनसंख्या, चावल और गेहूं का उत्पादन करने की क्षमता से अधिक तेजी से बढ़ रही है। अन्य सुत्रो से पता चलता है कि, भारत अपनी बढती जनसंख्या को अराम से खिला सकता है और साथ ही साथ चावल और गेहूं को निर्यात भी कर सकता है। बस, भारत को अपनी बुनियादी सुविधाओं को बढाना होगा जिससे उत्पादक भी बढे जैसे अन्य देश ब्राजील और चीन ने किया। भारत २०११ में लगभग २लाख मीट्रिक टन गेहूँ और २.१ करोड़ मीट्रिक टन चावल का निर्यात अफ्रीका, नेपाल, बांग्लादेश और दुनिया भर के अन्य देशों को किया। जलीय कृषि और पकड़ मत्स्यपालन भारत में सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों के बीच है। १९९० से २०१० के बीच भारतीय मछली फसल दोगुनी हुई, जबकि जलीय कृषि फसल तीन गुना बढ़ा। २००८ में, भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा उत्पादक था समुद्री और मीठे पानी की मत्स्य पालन के क्षेत्र में और दूसरा सबसे बड़ा जलीय मछली कृषि का निर्माता था। भारत ने दुनिया के सभी देशों को करीब ६,00,000 मीट्रिक टन मछली उत्पादों का निर्यात किया। भारत ने पिछ्ले ६० वर्षो मैं कृषि विभाग में कई सफलताए प्राप्त की है। ये लाभ मुख्य रूप से भारत को हरित क्रांति, पावर जनरेशन, बुनियादी सुविधाओं, ज्ञान में सुधार आदि से प्राप्त हुआ। भारत में फसल पैदावार अभी भी सिर्फ ३०% से ६०% ही है। अभी भी भारत में कृषि प्रमुख उत्पादकता और कुल उत्पादन लाभ के लिए क्षमता है। विकासशील देशों के सामने भारत अभी भी पीछे है। इसके अतिरिक्त, गरीब अवसंरचना और असंगठित खुदरा के कारण, भारत ने दुनिया में सबसे ज्यादा खाद्य घाटे से कुछ का अनुभव किया और नुकसान भी भुगतना पड़ा। भारत मे सिंचाई संपादित करें सरदार सरोवर नहर (गुजरात) मुख्य लेख: भारत में सिंचाई व्यवस्था भारत में सिंचाई का मतलब खेती और कृषि गतिविधियों के प्रयोजन के लिए भारतीय नदियों, तालाबों, कुओं, नहरों और अन्य कृत्रिम परियोजनाओं से पानी की आपूर्ति करना होता है। भारत जैसे देश में, ६४% खेती करने की भूमि, मानसून पर निर्भर होती है। भारत में सिंचाई करने का आर्थिक महत्व है - उत्पादन में अस्थिरता को कम करना, कृषि उत्पादकता की उन्नती करना, मानसून पर निर्भरता को कम करना, खेती के अंतर्गत अधिक भूमि लाना, काम करने के अवसरों का सृजन करना, बिजली और परिवहन की सुविधा को बढ़ाना, बाढ़ और सूखे की रोकथाम को नियंत्रण में करना। पहल वित्त वर्ष २०१३-१४ के अंत में भारत में कृषि की स्थिति[1] संपादित करें zsxds भारत की प्रमुख फसलों के उत्पादक क्षेत्र वर्ष 2013-14 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत वर्ष 2013-14 में 264.4 मिलियन टन खाद्यान का रिकॉर्ड उत्‍पादन वर्ष 2013-14 में 32.4 मिलियन टन तिलहन का रिकॉर्ड उत्‍पादन वर्ष 2013-14 में 19.6 मिलियन टन दलहन का रिकॉर्ड उत्‍पादन वर्ष 2013-14 में मुंगफली का सबसे अधिक 73.17 प्रतिशत उत्‍पादन हुआ अंगूर, केला, कसाबा, मटर और पपीता के उत्‍पादन के क्षेत्र में विश्‍व में भारत का पहला स्‍थान है वर्ष 2013-14 में खाद्यान के तहत क्षेत्र 4.47 प्रतिशत से बढ़कर 126.2 मिलियन हैक्‍टर हो गया वर्ष 2013-14 में तिलहन का क्षेत्र 6.42 प्रतिशत से बढ़कर 28.2 मिलियन हैक्‍टर हुआ 01 जून 2014 को केन्‍द्रीय पूल में खाद्यान्न का भंडारण 69.84 मिलियन टन 2013 में खाद्यान्‍न की उपलब्‍धता 15 प्रतिशत बढ़कर 229.1 मिलियन टन हो गई वर्ष 2013 में प्रति व्‍यक्ति कुल खाद्यान्‍न की उपलब्‍धता बढ़कर 186.4 किलोग्राम हो गई वर्ष 2013-14 में कृषि निर्यात में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि वर्ष 2013-14 में समुद्री उत्‍पादों के निर्यात में 45 प्रतिशत वृद्धि दर रही वर्ष 2012-13 में दूध उत्‍पादन 132.43 मिलियन टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा वर्ष 2013-14 में कुल सकल घरेलू उत्‍पाद में पशुधन क्षेत्र की 4.1 प्रतिशत भागीदारी रही वर्ष दर वर्ष भारत में दूध उत्‍पादन की वृद्धि दर 4.04 प्रतिशत है जबकि विश्‍व में यह औसत 2.2 प्रतिशत है वर्ष 2013-14 में कृषि क्षेत्र के लिए ऋण 7,00,000 करोड़ रुपये के लक्ष्‍य से अधिक वर्ष 2013-14 में सकल घरेलू उत्‍पाद में कृषि और इसके सहयोगी क्षेत्रों की हिस्‍सेदारी 13.9 प्रतिशत से घटी किसानों की संख्‍या घटी, वर्ष 2001 में 12.73 करोड़ किसान थे जिनकी संख्‍या घटकर 2011 में 11.87 करोड़ रह गई। उत्पादन में भारत का स्थान पहला स्थान : गन्ना, बाजरा, जूट, अरंडी, आम, केला, अंगूर, कसाबा, मटर, अदरक, पपीता और दूध दूसरा स्थान : गेहूँ, चावल, फल और सब्जियाँ, चाय, आलू, प्याज, लहसुन, चावल, बिनौला तीसरा स्थान : उर्वरक कृषि संस्थान संपादित करें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पन्तनगर चन्द्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार लाला लाजपतराय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार यशवन्त सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, काँके कृषि संबंधित अनुसंधान केन्द्र, राष्ट्रीय ब्यूरो एवं निदेशालय/परियोजना निदेशालय संपादित करें समतुल्य विश्वविद्यालय संपादित करें 1.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 2.राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल 3.भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर 4.केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, मुंबई संस्थान संपादित करें 1.केन्द्रीय धान अनुसंधान संस्थान, कटक 2.विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा 3.भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर 4.केन्द्रीय तम्बाकू अनुसंधान संस्थान, राजामुंद्री 5.भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ 6.गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर 7.केन्द्रीय कपास संस्थान, नागपुर 8.केन्द्रीय जूट एवं संबद्ध रेशे अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर 9.भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी 10. भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर 11. केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ 12. केन्द्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान, श्रीनगर 13. केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर 14. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी 15. केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला 16. केन्द्रीय कंदी फसलें अनुसंधान संस्थान, त्रिवेन्द्रम 17. केन्द्रीय रोपण फसलें अनुसंधान संस्थान, कासरगोड 18. केन्द्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेअर 19. भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, कालीकट 20. केन्द्रीय मृदा और जल संरक्षण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून 21. भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल 22. केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल 23. पूर्वी क्षेत्र के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान परिसर, मखाना केन्द्र सहित, पटना 24. केन्द्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद 25. केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर 26. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान परिसर, गोवा 27. पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्रों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान परिसर, बारापानी 28. राष्ट्रीय अजैविक दबाव प्रबन्धन संस्थान, मालेगांव, महाराष्ट्र 29. केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल 30. केन्द्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना 31. भारतीय प्राकृतिक रेज़िन और गोंद संस्थान, रांची 32. केन्द्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, मुंबई 33. राष्ट्रीय जूट एवं संबद्ध रेशे प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, कोलकाता 34. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 35. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदुम 36. केन्द्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान, हिसार 37. राष्ट्रीय पशु पोषण और कायिकी संस्थान, बेंगलौर 38. केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर 39. केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, कोच्चि 40. केन्द्रीय खारा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान, चैन्नई 41. केन्द्रीय अंतः स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर 42. केन्द्रीय मात्स्यिकी प्रौद्योगिकी संस्थान, कोच्चि 43. केन्द्रीय ताजा जल जीव पालन संस्थान, भुवनेश्वर 44. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान एवं प्रबन्धन अकादमी, हैदराबाद राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र संपादित करें 1.राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्यौगिकी अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली 2.राष्ट्रीय समन्वित कीट प्रबन्धन केन्द्र, नई दिल्ली 3.राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर 4.राष्ट्रीय नीबू वर्गीय अनुसंधान केन्द्र, नागपुर 5.राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केन्द्र, पुणे 6.राष्ट्रीय केला अनुसंधान केन्द्र, त्रिची 7.राष्ट्रीय बीज मसाला अनुसंधान केन्द्र, अजमेर 8.राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केन्द्र, शोलापुर 9.राष्ट्रीय आर्किड अनुसंधान केन्द्र, पेकयांग, सिक्किम 10. राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केन्द्र, झांसी 11. राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर 12. राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार 13. राष्ट्रीय मांस अनुसंधान केन्द्र, हैदराबाद 14. राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र, गुवाहाटी 15. राष्ट्रीय याक अनुसंधान केन्द्र, वेस्ट केमंग 16. राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र, मेदजीफेमा, नगालैंड 17. राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली राष्ट्रीय ब्यूरो संपादित करें 1.राष्ट्रीय पादप आनुवंशिकी ब्यूरो, नई दिल्ली 2.राष्ट्रीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण सूक्ष्म जीव ब्यूरो, मऊ, उत्तर प्रदेश 3.राष्ट्रीय कृषि के लिए उपयोगी कीट ब्यूरो, बेंगलौर 4.राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, नागपुर 5.राष्ट्रीय पशु आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो, करनाल 6.राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो, लखनऊ निदेशालय/प्रायोजना निदेशालय संपादित करें 1.मक्का अनुसंधान निदेशालय, नई दिल्ली 2.धान अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद 3.गेहूँ अनुसंधान निदेशालय, करनाल 4.तिलहन अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद 5.बीज अनुसंधान निदेशालय, मऊ 6.ज्वार अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद 7.मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ 8.सोयाबीन अनुसंधान निदेशालय, इंदौर 9.तोरिया और सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर 10. मशरूम अनुसंधान निदेशालय, सोलन 11. प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, पुणे 12. काजू , भुवनेश्वर